शास्त्र / SHASTRA

अष्टा वक्र गीता/Ashtvakra Gita

टीकाकार अरुण शमार्/Tikakaar Arun Sharma

आत्मदर्शी ऋषि अष्टावक्र और विदेह महाराज जनक दोनों ही महान ज्ञानी और सिद्ध पुरुष हैं। इन दोनों के संवाद को ही अष्टावक्र गीता मेंसमाहित किया गया है। अध्यात्म ग्रन्थों मेंविद्वज्जन इसेउच्चतम श्रेणी मेंरखतेहैं। आत्मा की साक्षात्अनुभूति करवा देनेमेंयह ज्ञानमय संवाद सक्षम है। हमारा अस्तित्व ज्ञानमय है। अपनेहोनेका ज्ञान और चेतना की अनुभूति सबको है। यह ज्ञान या चेतना ही आत्मा है। यही इस ग्रन्थ का मूलभाव है। भिन्न भिन्न स्तरों एव आयामों मेंकियेगयेजनक के प्रश्न और ऋषि अष्टावक्र के उत्तर समस्त संशयों का समाधान कर, जीव के समस्त मल विक्षेप आवरणों को भेद कर उसेशुद्ध चैतन्य आत्मा के अनुभव मेंला सकतेहैं। कोहम सेसोहम तक की यह यात्रा अध्यात्म पथ के पथिक जनों को एक ज्योतिर्मय पथ प्रदान करती हैजिससेउन्हेंअन्घेरेमेंन भटकना पड़ेऔर वो अपनेगन्तव्य तक सहज ही पहुंच जाए। इस संवाद को मैंनेभी पढ़ा हैऔर अपनी छोटी सी बुद्धि सेमैंजो ग्रहण कर सका वह लिखनेका प्रयास किया है। वही यहाँप्रस्तुत है।

Both the self-realized sages Ashtavakra and Videha Maharaj Janak are great knowledgeable and accomplished personalities. The dialogue between these two is Ashtavakra Geeta. Scholars place it in the highest category among spiritual texts. This knowledge-filled dialogue is capable of making someone experience the soul directly. Our existence is knowledge only. Everyone has the knowledge of their existence and experience of consciousness. The knowledge or consciousness is the soul itself . This is the basic idea of this text. Questions asked at different levels and dimensions by Janak and the answers of Rishi Ashtavakra’s to that can resolve all doubts, break through all the impurities which cover the real self and discover the pure being and bring it directly in the experience of the yogi . This journey from “Koham” to “Soham” provides a luminous path to the people on the spiritual path so that they do not have to wander in the dark and help them reach their destination easily. I have studied this dialogue and have tried to write what I could gather and understand with my small intellect. The same is presented here. ~ Arun Sharma

योग विशष्ठ /Yog Vashisht

अरुण शमार्/Arun Sharma

मनुष्य का सांसारिक जीवन उसकी वासनाओ का परिणाम है। मनुष्य मानसिक एवं बौद्धिक स्तर पर संकल्प विकल्प के द्वरा अपनेभीतर एक अव्यक्त सूक्ष्म जगत का निर्माण करता है। पूर्ववासनाओ और कामनाओ ंसेनिर्मित इसी अव्यक्त मनोबौद्धिक जगत की अभिव्यक्ति हमारा व्यक्तित्व है। संचित और प्रारब्ध की इस श्रृंखला का संवर्धन हमारेकर्मही करतेहैं। इन कर्मों को क्रियामाण कहा जाता है। जीव द्वारा रचित यह मनोभौतिक व्यूह कालान्तर मेंऐसा जटिल जंजाल हो जाता हैकि इससेबाहर निकलनेका कोई विकल्प ही नहीं दिखता। भौतिक जगत मेंस्थूल शरीर धारण करनेका कारण मन बुद्धि के द्वारा रचित मोहमाया का वह सूक्ष्म अव्यक्त जगत ही हैजिसमेंस्थूल सृष्टि का सारा खांचा खींच दिया जाता है। मनोबौद्धिक सृष्टि ही पञ्चभौतिक जगत का सृजन करती है। कारण और परिणाम का जो गुह्य मंथन और विस्तृत विवेचना इस शास्त्र मेंकी गयी हैवह और वही भी उपलब्ध नहीं दिखाई देती। परम सत्य का उद्घाटन जिस गहराई और सूक्ष्मता सेभिन्न कथाओ ंऔर उपमाओ ंद्वरा
इस शास्त्र मेंकिया गया हैउसका गहन अध्ययन और यहां प्रमाणित कियेगयेसत्य को बुद्धि मेंधारण और आत्मसात्कर जीव इस मायावी आवागमन सेमुक्त होकर परम पद को प्राप्त हो सकता है।

What is normally seen in the world as the driving force of the life is desire. Desire of yesterday is the working force for today. It goes in the same manner as planning for weeks, months, years, decades and births after birth. This plan is executed through Karma. Back force is desire and the working or execution force is called karma. Karma and bhoga becomes the eternal cycle of our life, karma and bhoga creates a web stuck in which we forget our real introduction, i.e., Atman or real self. We start seeing us that what we are not. The real self is shadowed by a false self created by mind intellect and ego. Our physical self becomes truth and the pure being or real self is covered by thoughts memories and experiences related to the manifested physical world only . Although we witness constantly the construction, destruction and the changes in the world yet we don’t recognise the “witnesser”. This is called avidya or agyana. This shastra, the holy scripture created by Saint Vashishtha fathoms the depth and brings out the ultimate truth which enables us to understand the constitution of the nature through which this world is created. It also gives us the indication of the presence our existence throughout and perpetually. We are the source of consciousness in our pure form .This understanding bring a change in our thought process and also brings us close to Atman ie our real self or pure being. Through different illustrations and stories it has been simplified and made easy for us to research the reality which is hiding behind a false curtain drawn by MAYA. it gives us a guideline to break this complex web and find out our conscious being ie Atman. ~ Arun Sharma

दय गीितका/Hriday Geetika

टीकाकार अरुण शमार्/Tikakaar Arun Sharma

भगवत्गीता वास्तव मेंभगवत्ही है, यह भगवान के जैसी ही मुक्तिदायिनी है। यह मानव हृदयों के अन्तराल मेंगूंजता हुआ वहउद्गीत हैजिसेभक्तों के कल्याण हेतुभगवान नेस्वयं है। इस गीत की धुन को सुन कर आत्मा मेंजो हिलोर उठती हैवह जीव को शब्द ब्रह्म के पार पर-ब्रह्म मेंलय कर देती है। इस गीत की एक अस्फुट अस्पष्ट सी धुन मैनेभी सुनी है। सुनकर हृदय मेंएकहलचल सी हुई, कु छ उद्गार उठेजिन्हेंमैंनेभावार्थऔर काव्यार्थरूप मेंप्रस्तुत करनेका प्रयत्न किया है। इस प्रयास मेंकितना सफल या असफल हुआ इसका निर्णय तो प्रबुद्ध पाठकगण ही कर सकेंग।

Bhagwat Gita is really Bhag-wat, it is like God in itself. It is the song that resonates in the depths of human hearts, which God himself has created for liberating the devotees. The ripples that arise in the soul after listening this song merge the soul in supreme being i.e. Krishna. I have also heard an indistinct, unclear tune of this song. There was a stir in the heart after listening to it, some expressions arose which I have tried to present in the poetic form. Only learned readers will decide how true or untrue, successful or unsuccessful I was in this attempt. ~ Arun Sharma

िविवध िवचार/Vividh Vichaar

अरुण शमार्/Arun Sharma

मन मेंभावों का और बुद्धि मेंविचारों का उठता एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। जैसेसब मेंविचार उठते हैंवैसी ही मुझमेंभी उठेहैं। उनमेंसेकु छ विचारों का संकलन यहां प्रस्तुत है। विचारों मेंविविधता होतेहुए भी इनका मूल केन्द्र सनातन विद्या ही है। मनुष्य की बुद्धि बहुगामी होकर भटक जाय तो वह किसी धरातल पर नहीं टिक पाती। मनोविचारों का कोई न कोई सिद्धान्तिक पक्ष यानिश्चित दिशा मनुष्य को तय करनी ही पड़ती है। गीता मेंभी व्यवसायात्मिका (निश्चयात्मिका) बुद्धि के बारे मेंकहा गया है। यहां जिन विषयों पर विचार किया गया हैवो विषय शास्रों सेही लियेगयेहै। मनोभावों के इस चित्रण की मार्गदर्शिका एवंप्रेरणा स्रोत प्रधानत: भगवत्गीता ही है। आशा है स्नेही पाठकगण त्रुटियों के लियेमुझेक्षमा करेंगे।
The emergence of thoughts in the intellect is a natural process. Just as thoughts arise in everyone, similarly they have arisen in me too. A compilation of some of those thoughts is presented here. Despite the diversity in thoughts, their main center is Sanatan Vidya. If the intellect becomes multi-faceted and strays, then it cannot stand on any ground. It is wise to decide some definite direction for the thoughts. In Bhagwat Gita also decisive intellect has been described. The subjects here have been selected from the holi scriptures only. The guide and source of inspiration for this depiction of emotions is mainly Bhagawat Gita. I don’t want to say anymore about it, the respected readers will decide much better. ~ Arun Sharma

आत्म ने पद्ये /Aatmne Padye

अरुण शमार्/Arun Sharma

मनोभावों की काव्यात्मक अभिव्यक्ति मेंएक विशिष्ट रस की निष्पत्ति होती है। हृदय की सुगंध को कविता मेंव्यक्त करनेका विधान अति प्राचीन है। हृदय की ताल पर छन्दों का नृत्य पुरातन काल से चला आ रहा है. भाव जगत मेंकविता का अनुपममहत्व और विशेष स्थान है। मानसरोवर मेंउठी हुई कु छ लहरों को छन्दों मेंबांधनेका मैनेभी एक प्रयास किया है। आशा करता हूंसमरस बंधुजनो के मनोभावों को इसमेंसेकु छ न कु छ तो अवश्य ही छू पाएगा।

Poetic expression of emotions creates a special rasa. The method of expressing the fragrance of the heart in poetry is very ancient. The dance of verses on the rhythm of the heart has been going on since ancient times. Poetry (PADA) has a unique importance and special place in the world of emotions. I have also made an attempt to bind some ripples rising in Manas in words. I hope that something out of it will definitely touch the emotions of harmonious brothers. ~ Arun Sharma

आत्म तत्त्व प्र भो/Aatma Tatva Prabho

अरुण शमार्/Arun Sharma

स्वामी विद्यारण द्वारा रचित यह आत्म प्रसाद अतिशय विलक्षण है. इस प्रसाद को ग्रहण करना अमृत पान करनेजैसा ही है. इसमेंसमाहित ज्ञानको बोध मेंधारण करनेवाला मृत्युञ्जय होकर भवचक्र को पार कर जाता है। विवेक के द्वारा सत्और असत्को जानकर अन्वय व्यतिरेक प्रक्रिया सत्में प्रतिष्ठित और असत्सेमुक्त हुआ जा सकता है. इस संकलन मेंग्रन्थ के मूल भावों का समावेश हैं. स्वामी जी का यह प्रसाद कै सा हैवह तो इसेग्रहण करनेवाला ही जान सकता है।

This Aatma Prasad distributed in Panch Dashi by Swami Vidyaranya which has been translated by Swami Shankaranand is very unique. Inhaling this Prasad is like drinking nectar. The one who conceives the knowledge contained in it becomes immortal and crosses the cycle of birth and death. By knowing the truth and untruth through discretion, one can establish oneself in truth and be free from untruth through the process of Anvay and Vyatirek. This compilation contains the basic ideas of the original text. How is this prasad, only those who accepts it can know. ~ Arun Sharma

रमात्मा ब्रह्म /Ramatma Brahma

अरुण शमार्/Arun Sharma

राम हमारी और सम्पूर्णजगत की आत्मा है। उनकी लीला स्थली मानव हृदय और मानव सुमनों से विकसित यह सम्पूर्णविश्व वाटिका है। राम चरित को ज्ञानियों और भक्तों नेअपने-अपनेभावों से व्यक्त किया है। जिसके हृदय सिन्धुमेंजैसी भाव लहर उठी, सबनेउसेही शब्दों मेंबांधनेका प्रयत्न किया है। राम अनन्त अनादि पर – ब्रह्म परम तत्व परमात्मा हैं। उनके चरित को व्यक्त करना वाणी की सीमा सेपरे हैफिर भी प्रयास तो सब करतेही हैं, “रामात्म ब्रह्म” हृदय मेंउठेमनोभावों को व्यक्त करनेका मेंरा भी एक छोटा सा प्रयास है। भगवान राम के चरणों मेंश्रद्धा सुमनों का अर्पण है। आशा करता हँराम तत्व के जिज्ञासुबन्धुओ ंको पसंद आयेगा।

Ram is the soul in us and the entire world is his play house. This entire universe is the expression of energy into matter. The learned devotees have expressed Ram Charit through their own feelings. Everyone has tried to express his feelings which arose in his heart through yog with RAM. RAM is the eternal Supreme Being. Expressing him in words is beyond the capacity of anyone, yet everyone tries. “Ramatm Brahman” is also a small effort to express the same. I am offering this as flowers of respect at the feet of Lord Ram. ~ Arun Sharma

काल अकाल तत्व दशर्न/Kal Aakal Tatvadarshan

अरुण शमार्/Arun Sharma

यह संकलन विद्वान शिरोमणि महात्मा श्री वासुदेव जी पोद्दार द्वारा रचित पुस्तकों मेंसेकिया गया है जिसकी अनुमति उनके सुपुत्र ही महेश पोद्दार नेदी है। वासुदेव जी नेकाल तत्व का गहन अन्वेषण किया और उनका कहना हैकि काल का आधार आत्मा है। आत्मा के बिना काल का कोई अस्तित्व नहीं है। अकाल आत्मा का काल मेंनर्तन ही सृष्टि सृजन का आधार है। परमात्मा की महामाया ही सष्टि के सृजन और प्रलय की आधार भूता महाशक्ति है। प्रकृति और पुरुष अनादि तत्व हैजब वो पृथक होकर विहार करनेनिकलतेहैंतो उनके विहार हेतुविहारस्थली जगत बन जाता हैऔर जब वो युग्म होकर सुषुप्ति मेंचले जातेहैंतो जगत उनमेंलीन हो जाता है। इसी का विस्तार इस संकलन मेंहै। आशा हैकि तत्व दर्शन के जिज्ञासुबन्धुओ ंके लिये यह लाभान्वित सिद्ध होगा।

This compilation has been done from the books written by the learned Mahatma Shri Vasudev Ji Poddar, the permission of which has been taken from his son Mahesh Poddar. Vasudev Ji did a deep research of the time element and he says that the basis of time is the soul. Maya is the superpower in which creation and destruction takes place. Nature (Prakriti) and Conscious Being (Purusha) are eternal elements. When they separate and wish to go out and roam, the world is created as the place of their wandering and when they become a couple and go into deep sleep, the world gets absorbed in them. This is elaborated in this compilation. Hope it will be found beneficial by the friends who are curious to know the mystery of the universe in time and the space. ~ Arun Sharma